*मऊगंज कांड पर सत्तारूढ़ नेता के साथ ब्राह्मण नेता मौन क्यों?*: चैतन्य मिश्रा 

 

अनूपपुर। मऊगंज की वीभत्स घटना के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सत्ता में बैठे ब्राह्मण नेता कहाँ हैं? जो नेता हर चुनाव में ब्राह्मणों की आस्था, परंपरा और संस्कृति की दुहाई देकर वोट मांगते हैं, वे आज इस अन्याय पर खामोश क्यों हैं? जब किसी और समाज के साथ घटना होती है, तो ये नेता ट्वीट, बयान और दौरे करते नहीं थकते, लेकिन जब पीड़ित ब्राह्मण हो, तो संवेदनशीलता क्यों गायब हो जाती है?प्रदेश में कई प्रभावशाली ब्राह्मण नेता उच्च पदों पर विराजमान हैं मंत्री, विधायक, सांसद, और संगठन के बड़े पदाधिकारी। लेकिन क्या उन्होंने मऊगंज की घटना पर एक भी ठोस बयान दिया? क्या वे पीड़ित परिवार के घर गए? क्या उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर इस मामले में त्वरित कार्रवाई की माँग की?सत्ता में बैठने का अर्थ सिर्फ़ पद और प्रतिष्ठा हासिल करना नहीं होता, बल्कि अपने समाज और प्रदेश के लोगों के प्रति ज़िम्मेदारी निभाना भी होता है। अगर सत्ता में बैठे ब्राह्मण नेता ही अपने समाज के प्रति उदासीन रहेंगे, तो फिर आम ब्राह्मण किससे न्याय की उम्मीद करे?जब किसी "संरक्षित वर्ग" के व्यक्ति के साथ कोई घटना होती है, तो यही सत्तारूढ़ नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, सरकार पर दबाव बनाते हैं और तत्काल मुआवजे व न्याय की माँग करते हैं।लेकिन जब ब्राह्मण समाज के युवक को पीट-पीटकर मार दिया जाता है और एक एसआई शहीद हो जाता है, तो ये नेता मौन धारण कर लेते हैं।क्या यह सिर्फ़ राजनीतिक गणित है? क्या इन नेताओं को लगता है कि ब्राह्मण समाज उनके बिना भी वोट देगा, इसलिए उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती? आर्यावर्त 
ब्राह्मण महासभा स्पष्ट रूप से यह माँग करती है कि जिस तरह अन्य मामलों में "अत्याचार अधिनियम" और अन्य कठोर धाराएँ लगाई जाती हैं, वैसे ही यहाँ भी होना चाहिए। यदि अन्य मामलों में मुख्यमंत्री और अधिकारी संवेदनशीलता दिखाते हैं, तो यहाँ क्यों नहीं? ब्राह्मणों के साथ अन्याय की यह आखिरी घटना नहीं है। हर बार हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम सहन करें, सहिष्णु बने रहें। लेकिन क्या सहिष्णुता का अर्थ अन्याय को स्वीकार कर लेना है? अब समय आ गया है कि समाज एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद करे। यदि सरकार, प्रशासन और मीडिया आँख मूँदकर बैठे रहेंगे, तो ब्राह्मण महासभा लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीके से इस अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाएगी।ब्राह्मण समाज अब अपने हक़ और न्याय के लिए संगठित होगा, संघर्ष करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी हमारी उपेक्षा न कर सके।


"सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" का अर्थ केवल एक पक्षीय नहीं हो सकता। न्याय सबके लिए समान होना चाहिए!