मॉस्‍को । यूक्रेन की जंग की वजह से लगे प्रतिबंध और भारत के पेमेंट सिस्‍टम की वजह से रूसी तेल पर झटका लगाने वाला है। दरअसल रूस पर लगे अमेरिका और यूरोपियन देशों के प्रतिबंध भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकते है। पेमेंट का मामला इतना बड़ा होता जा रहा है कि रूस अब ज्‍यादा समय तक तेल सप्‍लाई करने की स्थिति में नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक रूस, डॉलर में भारत को अब तेल सप्‍लाई नहीं करना चाहता है। रूस की तरफ से पहले ही डिस्‍काउंट पर तेल मिल रहा है। सूत्रों के मुताबिक जी7 देशों की तरफ से प्रति बैरल 60 डॉलर की कीमत तय कर दी गई है। इसके बाद में भारत के सामने चुनौती काफी बड़ी है और आने वाले दिनों में इस स्थिति का क्‍या नतीजा होगा, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।
सूत्रों की तरफ से कहा गया है कि भारत चीनी मुद्रा युआन या यूरो में पेमेंट नहीं करना चाहता है। बैंक अगर डॉलर में पेमेंट करते हैं तब फिर कच्‍चे तेल की जो कीमत जी7 देशों की तरफ से तय की गई है यह उसका उल्‍लंघन करेगी। इसकारण बैंक और व्यापारी इसमें शामिल नहीं होना चाहते हैं। रुपए में पेमेंट एकमात्र विकल्‍प है। लेकिन मॉस्को पहले से ही भारत के रक्षा उपकरणों के आयात के कारण रुपए के बढ़ते असंतुलन से जूझ रहा है। यह स्थिति काफी मुश्किल होती जा रही है। यूक्रेन की जंग के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करते रूस को भारत में अपने कच्‍चे तेल का बड़ा बाजार मिला।
रूस ने भारी छूट के साथ भारत को तेल की पेशकश की। इसका नतीजा था कि रूस से भारत को कच्चे तेल का आयात साल 2022-23 में करीब 13 गुना बढ़ गया। जहां साल 2021-22 में यह 2.5 अरब डॉलर का था तो 2022-2023 में यह 31 अरब डॉलर से भी ज्‍यादा हो गया। रूस अब सऊदी अरब, यूएई और कुवैत जैसे पारंपरिक ऑयल सप्‍लायर्स को पीछे छोड़कर आगे निकल गया है। अब वह भारत का तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। सूत्रों की मानें भारत को जो तेल मिल रहा है वह काफी हद तक जी7 देशों की तरफ से तय की गई कीमतों से नीचे था। भारत ज्यादातर तेल के लिए डॉलर में पेमेंट करने में सक्षम है। लेकिन 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत वाला तेल अब अधिकतर खत्म हो चुका है। एक कारण यह है कि चीन की बढ़ती मांग के कारण रूस ने तेल पर छूट कम कर दी है। दूसरा यह है कि यूरेल का निचला ग्रेड, जो सस्ती कीमत पर उपलब्ध था, अब कम आपूर्ति में है और भारत को उच्च स्तर पर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सूत्रों ने बताया है कि विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधिकारी इस स्थिति पर विचार विमर्श कर रहे हैं और सबसे अच्छे तरीके से संभालने के तरीकों पर चर्चा की जा रही है।