नई दिल्ली । देश के स्कूलों में बच्चे क्या पढ़े और क्या नहीं, इस का निर्णय राज्य सरकारें अपने स्तर पर नहीं कर सकती हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने स्कूलों में बच्चों के सिलेबस में एकरूपता पर जोर दिया है। आयोग ने सभी राज्यों को पत्र भेजकर सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों में एनसीईआरटी और एससीईआरटी की तरफ से निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का पालन करने के लिए निर्देश जारी करने को कहा है। पत्र में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क का भी हवाला दिया गया है।
आयोग ने कहा है कि बोर्ड की ओर से अपने स्वयं के पाठ्यक्रम को लागू करने का कोई भी प्रयास जो राज्य शैक्षणिक प्राधिकरण, एनसीईआरटी के अनुपालन में नहीं है, कानून का उल्लंघन है। आयोग ने मांग की है कि स्कूलों को अनुपालन के निर्देश जारी किए जाएं और 30 दिनों के भीतर एनसीपीसीआर को कार्रवाई रिपोर्ट सौंपी जाए। एनसीपीसीआर के चीफ प्रियांक कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिवों और सचिवों को लेटर लिखा है। इसमें कहा गया है कि सभी स्कूलों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं कि यदि कोई राज्य, बोर्ड या स्कूल निर्धारित सिलेबस के अलावा अपना पाठ्यक्रम (सिलेबस और टेक्स्ट बुक) लागू करता है, तब इस प्रथम दृष्टया आरटीई अधिनियम का उल्लंघन माना जाएगा।
(एनसीईआरटी/एससीईआरटी) की तरफ से प्रकाशित और निर्धारित पुस्तकों को ले जाने के लिए स्कूल द्वारा किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव, उत्पीड़न या उपेक्षा नहीं की जाएगी। ऐसा होने पर मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है। साथ ही यह भी कहा गया है कि बच्चे के खिलाफ कोई कदम उठाने पर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रोविजन के तहत ऐक्शन लिया जा सकता है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया है कि राज्य की तरफ से जारी ऐसे निर्देश उनके विभाग की वेबसाइट पर प्रदर्शित किए जाएंगे। साथ ही स्कूलों को कहा जाए कि वे इस आशय के दिशा-निर्देश स्कूल की वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करें।