प्रदेश की समस्त अधीनस्थ अदालतों में तीन महीने में 25 प्रकरणों के अनिवार्य निराकरण संबंधी उच्च न्यायालय प्रशासन के आदेश को चुनौती देने के मामले में 29 अगस्त को सुनवाई होगी। मामले की प्रचलनशीलता पर सुनवाई के बाद जस्टिस शील नागू व जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की युगलपीठ ने याचिका की विचारणशीलता को लेकर उठाई गई आपत्ति निरस्त कर दी है। 

ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशनके प्रतिनिधि व सेवानिवृत एडीजे राजेंद्र कुमार श्रीवास व एडवोकेट यूनियन फॉरडेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस के प्रतिनिधि अधिवक्ता राम गिरीश वर्मा ने याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि याचिका में उठाए गए मुद्दों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्यों की बेंच ने स्पष्ट किया है कि देश की विधायिका (संसद) के अलावा आपराधिक व दीवानी प्रकरणों की सुनवाई की समय सीमा का निर्धारण सुप्रीम कोर्ट व कोई भी हाईकोर्ट तय नहीं कर सकता।

इस संबंध में उन्होंने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के कई न्याय दृष्टांत भी प्रस्तुत किए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक शाह पक्ष रख रहे हैं।