14वीं शताब्दी की ऐतिहासिक खिड़की मस्जिद का जीर्णोद्धार किया जाएगा। यह नए रंग-रूप में देसी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करेगी। बारिश, मौसम की मार व संरक्षण के अभाव से मस्जिद के गुंबद क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इसमें कई गुंबद जर्जर अवस्था में हैं। मुख्य रूप से इसकी छत के पूर्व में स्थित नौ गुंबद का संरक्षण कार्य किया जाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इसके लिए संरचना तैयार की है। इसका संरक्षण कार्य चार माह चलेगा। परियोजना की अनुमानित लागत 40 लाख रखी गई है। बता दें कि आखिरी बार इसका संरक्षण कार्य 15 वर्ष पहले किया गया था। यह मस्जिद दूर से ही पर्यटकों को आकर्षित करे, इसके लिए लाइटिंग की व्यवस्था भी की जाएगी। संरक्षण कार्य के लिए धौलपुर व आगरा से कारीगर आएंगे। इसमें लाल पत्थर का इस्तेमाल किया जाएगा। गुंबद के आकार के ढांचे के निर्माण के लिए सूखी ईंटों का उपयोग किया जाएगा। इसमें गीली मिट्टी और सूखी जूट का मिश्रण शामिल होगा। इसके मिश्रण को ढांचों पर चार इंच की परत से ढंका जाएगा। इसकी ईंट की चिनाई की जाएगी। एक महीने के बाद ढांचे को हटा दिया जाएगा और अंतिम संरचना का नए स्वरूप में आकार दिया जाएगा। खिड़की मस्जिद समान आकार के 25 वर्गों में विभाजित है। इसमें से नौ वर्ग छोटे गुंबद की संरचना है। यहां कुल मिलाकर 81 गुंबद छत की शोभा बढ़ाते हैं। ये वर्ग 12 सपाट छतों से घिरे हुए हैं, जबकि शेष चार वर्ग प्रकाश और वेंटिलेशन की अनुमति के लिए खुले छोड़े हैं। हौजखास के वरिष्ठ संरक्षण सहायक दीपक पंवार ने बताया कि चिनाई के काम में चूने के मोर्टार, चूना, सुरखी और गुड़, बेलगिरी और गोंद जैसे प्राकृतिक चिपकने वाले मिश्रण वाली रेत का उपयोग किया जाएगा। 

खिड़की मस्जिद का इतिहास

खिड़की मस्जिद का निर्माण 14वीं शताब्दी में किया गया था। इसका निर्माण तुगलक वंश के शासक फिरोज शाह तुगलक के प्रधानमंत्री रहे खान-ए-जहान जुनान शाह ने 1351-54 के बीच करवाया था। मस्जिद के अंदर बनी खूबसूरत खिड़कियों की वजह से इसका नाम खिड़की मस्जिद पड़ा। यह मस्जिद दो मंजिला है। मस्जिद के चारों ओर के कोनों पर बुर्ज बने हैं, जो इसे किले का रूप देते हैं। तीन दरवाजों पर मीनार बनी हैं।