नई दिल्ली। भड़काऊ भाषण देने के मामले में विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक बैठक आयोजित करने वाले किसी व्यक्ति को प्रतिभागियों में से किसी एक द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

आलोक कुमार के खिलाफ प्राथमिकी करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा कहा कि मजिस्ट्रेट ने जिस दौरान किसी स्वामी ने भड़काऊ भाषण दिया, उस समय आलोक कुमार वहां मौजूद नहीं थे। इतना ही नहीं नौ जुलाई 2019 के रिकॉर्ड बताते हैं कि उक्त दिन पर याचिकाकर्ता कई सामाजिक कार्यक्रम में व्यस्त थे और इसके बाद वह दिल्ली हाई कोर्ट में मामलों में जिरह के लिए पेश हुए थे, जहां उनकी उपस्थिति भी दर्ज है।

ऐसे आदेश अधिक सावधानी से किए जाए पारित- हाईकोर्ट

अदालत ने कहा कि आरोपों की संवेदनशील की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए तथ्य यह है कि पुलिस की प्रारंभिक जांच में सांप्रदायिक वैमनस्य का कोई सुबूत सामने नहीं आया है। ऐसे में अदालत की सलाह है कि इस तरह के मामले में प्राथमिकी करने का आदेश अधिक सावधानी से पारित किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि भारत जैसे देश में सभी समुदाय एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और सौहार्दपूर्ण जीवन जीते हैं। ऐसे मामलों को पारित करते समय मजिस्ट्रेट भले ही रिकॉर्ड पर दायर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट से असहमत हों, लेकिन अदालत को ध्यान रखना होगा कि सांप्रदायिक शांति और विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की सहिष्णुता को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अदालत ने कहा कि यह भी ध्यान रखना होगा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ बिना किसी कारण के प्राथमिकी करने का आदेश दिया जा रहा है उसकी प्रतिष्ठा दांव पर है।

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता हर्ष मंदर ने पुलिस में जो शिकायत दी थी उसमें अालोक कुमार के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया था। मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर की गई अपनी शिकायत में कुमार के खिलाफ कही गई एक भी पंक्ति प्रथम दृष्टया न तो किसी अपराध का गठन नहीं करती है और न ही इससे कुमार के खिलाफ कोई मामला नहीं बनाता है। अदालत ने कहा कि कुमार के खिलाफ कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं है।

अदालत ने नोट किया कि इस मामले में पुलिस ने पाया था कि कुमार के भाषण में कोई सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने जैसी कोई सामग्री नहीं थी। उक्त टिप्पणी के साथ ही अदालत ने चेतावनी कि इस तरह के आदेश पारित करते समय न्यायाधीशों को सावधान रहना होगा।

यह है मामला

विहिप कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने उनके खिलाफ प्राथमिकी करने का आदेश देने के निचली अदालत के आठ फरवरी 2020 के आदेश को हाई काेर्ट में चुनौती दी थी। निचली अदालत के उक्त आदेश पर हाई कोर्ट ने 20 मार्च 2020 को रोक लगा दी थी।

निचली अदालत ने उक्त आदेश शिकायतकर्ता हर्ष मंदर की शिकायत पर दिया था। एक जुलाई 2019 में पुरानी दिल्ली के लाल कुआं में हुई एक मंदिर में तोड़फोड़ हुई थी। इसी को लेकर विहिप द्वारा एक बैठक बुलाई गई थी। इसामें काशी से आए एक स्वामी ने एक भड़काऊ भाषण दिया था। इसके खिलाफ हर्ष मंडर ने शिकायत दी थी।