राजधानी में वन क्षेत्र को बढ़ाने व प्रदूषण कम करने के लिए नजफगढ़ स्थित खड़खड़ी जटमल गांव के पास शहरी वन विकसित किया जाएगा। जापानी तकनीक मियावाकी जंगल की तर्ज पर इसे 2.4 हेक्टेयर क्षेत्र में तैयार किया जाएगा। यहां पीपल, पिलखन, गूलर, बरगद समेत कई तरह के स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे। इससे आने वाले वर्षों में यहां हरे-भरे पेड़-पौधे लहलहाते नजर आएंगे। मियावाकी जंगल तैयार होने के बाद लोग सुबह-शाम की सैर के साथ कई तरह के पेड़-पौधों की प्रजातियां देख सकेंगे। इसे लेकर वन एवं वन्यजीव विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वन के रूप में यहां सुकून वाली जगह मिलेगी। साथ ही, लोग प्राकृतिक सौंदर्य को निहार सकेंगे और ताजी हवा के साथ जलस्रोत के शीतल जल का आनंद ले सकेंगे। इसमें सबसे पहले प्रोजेक्ट क्षेत्र में तीन फीट के आसपास एक मीटर तक मिट्टी को खोदा जाएगा। जैविक खाद, भूसा, नारियल का जूट डालकर उर्वरकता बढ़ाई जाएगी। पौधों को तीन लेयर में रखा जाएगा। इनमें झाड़ीनुमा, फिर मध्यम आकार और मध्यम से थोड़े बड़े पौधे लगाए जाएंगे। खास बात यह है कि इन पौधों की केवल तीन साल तक देखरेख की जाएगी। इसके बाद ये खुद पोषक तत्व लेने के लिए तैयार हो जाएंगे। 

जैनपुर गांव में भी बनेगा 4.64 हेक्टेयर का जंगल

विभाग ने नजफगढ़ के जैनपुर गांव में ऐसे एक और 4.64 हेक्टेयर जंगल को विकसित करने की योजना बनाई है। वन में तरह-तरह के पौधे लगाने के साथ लोगों की सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाएगा। विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वन धरती के फेफड़ों की तरह काम करते हैं। वन क्षेत्र में विकसित किए जाने वाले जलाशय से भूमिगत पानी का संचय भी होता है। ऐसे में शहरी वन बहुत अहम है।

यह है मियावाकी जंगल तकनीक

मियावाकी जंगल तकनीक में हजारों देसी प्रजातियों के पौधों को एक छोटे से क्षेत्र में एक साथ उगाया जाता है। पारंपरिक जंगल की तुलना में मियावाकी जंगल न केवल कई गुना सघन होता है, बल्कि दो से तीन साल में तैयार हो जाता है। इसे खास प्रक्रिया के जरिए उगाया जाता है, ताकि ये हमेशा हरे-भरे रहें। जंगल विकसित करने के खास तरीके को जापान के बॉटेनिस्ट अकीरा मियावाकी ने खोजा था। इसमें पौधों को पहले उसी मिट्टी में नर्सरी में उगाया जाता है, उसे फिर उस जगह लगाया जाता है जहां जंगल को विकसित करना चाहते हैं। इस तरह पौधों को वही मिट्टी मिलेगी जिसमें वह अब तक पनपा है। वन विभाग के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश में जिस रूप से वन को विकसित किया जाता है उसमें एक हेक्टेयर में लगभग एक हजार पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन इसमें एक हेक्टेयर में एक हजार से कई अधिक पौधे रोपे जाते हैं।  

तंग शहरी स्थानों के लिए विकल्प

विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के मियावाकी वन पारंपरिक वनों की भूमिका नहीं बदल सकते हैं। उनका अपना अलग महत्व है। यह केवल छोटे, तंग शहरी स्थानों के लिए एक विकल्प है। अरावली जैव विविधता के साइंटिस्ट इंचार्ज डॉ. एम शाह हुसैन ने बताया कि कई देशों में इस तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें पौधे दो फीट से भी कम दूरी पर उगाए जाते हैं और वे सभी सूरज की रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसके लिए रखरखाव करना बहुत जरूरी है।