बांदा के काले पन्नों में दर्ज है ‘अशोक की लॉट’ का इतिहास
-लाल झंडाधारी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के वफादार सिपाहियों पर टूटा था खाकी वर्दीधारी सिपाहियों का कहर
-तत्कालीन तानाशाह एसपी आगा शाह ने 112 प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवाकर सुलाया था मौत की नींद

 


बांदा जनपदवासियों के लिये 12 जुलाई का दिन बेहद अहम है। यह दिन 57 साल पहले हुई एक तानाशाह एसपी की उस बर्बरतापूर्ण कृत्य की याद दिलाता है, जिसने लाल झंडे से लैस 112 प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज कराया और गोलियां चलवाकर उन्हें हमेशा के लिये मौत की नींद सुलाया था। प्रदर्शनकारियों का दोष मात्र यह था कि वे अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इतने वर्षों बाद भी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ता के एक तानाशाह अफसर द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर को रक्तरंजित करने वाली उस घटना को याद कर आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। भाकपा प्रतिवर्ष उन शहीदों की याद में यहां श्रृद्धांजलि सभा के साथ उपवास रखती है।  
57 वर्ष पूर्व एक पुलिस अधीक्षक के द्वारा अंजाम दिया गया बर्बरतापूर्ण कृत्य 12 जुलाई 1966 का दिन जनपद के इतिहास में उन काले पन्नों में दर्ज है, जिसको याद कर आज भी उस जमाने के लोगों का खून खौल उठता है, जब यह घटना घटी। उस जमाने में जनपद में लाल झंडे का ही बोलबाला था। उनके एक इशारे पर लाल टोपी और लाल झंडेधारी सड़कों पर उमड़ पड़ते थे। उस जमाने में आंदोलन इतने जबर्दस्त होते थे कि प्रशासन भी घुटने टेक देता था। लाल झंडे तले ही लोकसभा और विधानसभा से लेकर ग्राम पंचायत तक के चुनाव जीते जाते थे। 12 जुलाई 1966 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार के विरुद्ध ‘बंद’का आह्वान किया था। बंदी के दौरान जबरदस्त प्रदर्शन भी हुआ। बड़ी तादाद में मजदूर और किसान हाथों में लाल झंडे लिए सड़कों पर उतर आये। जब यह जुलूस कलेक्ट्रेट के पास अशोक लॉट तिराहे पर पहुंचा तो पुलिस उनके आगे दीवार बनकर आगे आ गई और प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रदर्शनकारी जोश और जज्बे से लबरेज थे। पुलिस प्रशासन ने सिर्फ तीन दिन ही पहले 9 जुलाई को जुझारू नेता स्व.रामभजन निगम और स्व.विश्वेश्वर वाजपेई को जेल भेज दिया था। इसको लेकर प्रदर्शनकारियों के मन में खाकी के लिये बेहद नफरत और गुस्सा भरा था। कचहरी के भीतर दाखिल होने से पहले ही पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोका तो दोनों के बीच भिड़ंत हो गई। पहले हाथापाई और फिर पथराव शुरू हो गया। कुछ देर बाद लाल झंडाधारियों पर पुलिस के डंडे चल पड़े। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आगा मुईनुद्दीन शाह पुलिस की कमान संभाले हुए थे। हातात बेकाबू होने पर पुलिस अधीक्षक के इशारा पर खाकी वर्दीधारी जवानों की रायफलों से भाकपा के सिपाहियों पर गोलियां बरस पड़ीं। उस वक्त दिन के तकरीबन 11 बजे थे। खाकी वर्दीधारियों की बंदूकों से निकली गोलियों ने बिना किसी से भेदभाव किये जो सामने आया उसी को ढेर कर दिया। पुलिस अफसर के आदेश पर बड़ी संख्या में लाल झंडाधारी प्रदर्शनकारी मारे गये। उस वक्त तकरीबन 112 प्रदर्शनकारियों के शहीद होने की खबर थी। इस बर्बरतापूर्ण घटना में सैकड़ों लोग घायल भी हुए। इस घटना के बाद हर साल 12 जुलाई को घटनास्थल पर शहीदों की याद में श्रृद्धांजलि सभा और उपवास की की परंपरा चल पड़ी। कई साल तक लोग शहीदों को याद में अशोक लॉट में जमा होते रहे, लेकिन धीरे-धीरे इस गोलीकांड की गूंज नरम पड़ती गई। नई पीढ़ी के कम ही लोगों को इस बर्बरतापूर्ण घटना की जानकारी है। 12 जुलाई बुधवार को जनपद की सबसे बड़ी खूनी क्रांति की 57वीं बरसी है। घटना के प्रत्यक्षदर्शी गवाह के रूप में अब शायद ही कोई लाल झंडाधारी जीवित हो। राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से लेकर स्वयंसेवी संगठन तक 112 शहीदों की शहादत को भूले रहे। देखना यह होगा कि इस बार लोग शहीदों को याद करने को अशोक लॉट पर जुटते हैं या फिर इस बार भी घटना स्थल अशोक लाट बीते कुछ वर्षोंक की तरह ही सूना पड़ा रहेगा।
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शव नदियों में फिकवाकर कुकृत्य छिपाने का किया प्रयास
57 साल पहले हुई खूनी क्रांति को इतिहासकार जनपद के लिये काला धब्बा बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि तानाशाह पुलिस अधीक्षक आगा मुईनुद्दीन शाह के इशारे पर पुलिस जवानों की रायफलों से गोलियां बरस पड़ीं। पुलिस कर्मियों के बंदूकों से निकली गोलियों ने किसी को नहीं बख्शा। प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाते हुए पुलिस ने आंदोलन को पूरी तरह से रौंद डाला। विरोध में जो सामने आया उसे पुलिस कर्मियों ने वहीं ढेर कर दिया। बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मारे गए। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने कुकृत्य को छिपाने के लिए पुलिस कर्मियों की मदद से तमाम लाशों को ट्रक में भरवाकर केन और यमुना नदी में फिकवा दिया।
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स्व.जेपी बोस ने किया था आमरण अनशन
इस घटना के बाद विरोध में समूचे जनपद में जोरदार आंदोलन हआ। हफ्तों बाजार बंद रही। वकील परिषद ने निंदा प्रस्ताव पारित किया। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाने की घटना की गूंज पूरे देश ने सुनी। स्व.समाजवादी नेता व पूर्वमंत्री जमुना प्रसाद बोस कई दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे रहे। कई दिनों तक चले आमरण अनशन में केंद्र और प्रदेश सरकारों की चूले हिल गईं। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाने का मुद्दा सालों तक गर्म रहा। बाद में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तानाशाह पुलिस अधीक्षक पर कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया।

भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी जिला इकाई के लोगों  आंदोलन में शहीद हुए किसान व मजदूरों को श्रद्धांजलि देकर किया याद
रिपोर्ट अजय यादव बांदा
बांदा - आपको बता दें कि पूरा मामला बांदा जिले के अशोक लाट तिराहे स्थिति चौराहे का है जहां पर आज दिन बुधवार को,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिला इकाई बांदा के सदस्यों ने अशोक लाट पहुंचकर 12 जुलाई सन 1966 में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित किया इसके बाद कचहरी गेट के पास में सभा भी हुई और शहीदों को याद किया गया सभा की अध्यक्षता सधारी व कामरेट देवीदयाल गुप्ता नए संयुक्त रूप से किया।
सभा में सैकड़ों लोग शामिल हुए अपनी मांगों को लेकर आज ही के दिन 1966 में हजारों किसान और मजदूर इकट्ठे हुए थे आंदोलन का नेतृत्व माननीय दुर्जन भाई व कामरेड राम सजीवन रामकृपाल पांडे देव कुमार चंद्रभान आजाद आदि लोग कर रहे थे।
 घटना के समय मौजूद रहे लोगों ने बताया कि इस बर्बर गोलीकांड मे शासन द्वारा घोषित वास्तव में 50 से 60 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे तब से लेकर अब तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी हर वर्ष मारे गए और शहीद हुए किसानों मजदूरों को श्रद्धांजलि देते हैं श्रद्धांजलि सभा को डॉक्टर रामचंद्र,  अच्छे अली ,श्यामसुंदर राजपूत ,श्याम बाबू तिवारी, मदन भाई पटेल ,देवनाथ यादव ,रमेश चंद्र दुबे ,मदन मोहन शर्मा ,आदि ने संबोधित किया था बैठक में रामचंद्र जारी व वीरेंद्र सिंह , राजन भाई देव प्रसाद यादव आदि लोग उपस्थित रहे।