खानापूर्ति करने शहडोल लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरी है कांग्रेस या विशेष चुनावी रणनीति
कहीं देर न हो जाए सता रही कांग्रेसियों को चिंता
इन्ट्रो-अनूपपुर जिले के राजनीतिक गलियारों में इस समय इस बात की चर्चा और बहुत छिड़ी हुई है कि क्या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी शहडोल लोकसभा के चुनाव में महज खाना पूर्ति करने के लिए मैदान में है अपने तर्क के पक्ष में बोलते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि जिले में एक भी चुनावी कार्यालय ना होने से इस बात को दम मिलता है।
(राम भैय्या)

अनूपपुर। जिले में प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह मिले एक हफ्ता बीत जाने को है इसके बावजूद चुनावी मैदान में मुख्य मुकाबला का नारा लगा रही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पास एक भी चुनावी कार्यालय ना होना अपने आप में कई तरह के सवाल खड़ा कर रही है। जहां इसे कांग्रेस के प्रत्याशी द्वारा अभी ब्लॉक विधानसभा की बैठकों में व्यस्त बताया जा रहा है वही यह भी कहा जा रहा है कि जिस पार्टी में कार्यकर्ता ही नहीं बचे हैं उसे पार्टी का चुनाव कार्यालय कैसे चल सकता है। फिलहाल स्थिति चाहे जो हो लेकिन वर्तमान में जिस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी का चुनावी अभियान चल रहा है उसको देखते हुए आगर जिले के राजनीतिक विश्लेषक इस बात का दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी महज खाना पूर्ति के लिए चुनावी मैदान में है तो गलत नहीं है। फिलहाल वर्तमान में कांग्रेस की जो स्थिति है उसमें साफ-साफ यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं का भाजपा में जाने से कहीं ना कहीं लोकसभा के चुनाव को प्रभावित कर रहा है ऐसे में कांग्रेस सबसे पहले कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए उनके संपर्क में है और अभी चुनावी व्यूह रचना करके चुनावी मैदान में उतरेंगे लेकिन अधिकतर लोगों का यह अभी मानना है की कही देर ना हो जाए।
किसी विशेष रणनीति  के तहत तो नहीं कांग्रेस उठा रही ऐसा कदम
शहडोल संसदीय क्षेत्र की राजनीतिक नब्ज को समझने वाले और पुष्पराजगढ़ कांग्रेस विधायक और वर्तमान में कांग्रेस प्रत्याशी फुन्देलाल मार्को के अब तक के राजनीतिक सफर पर एक बार की नजर दौड़ाने के बाद यह तो सभी कहते हैं कि फुन्देलाल एक ऐसे राजनीतिक सफर मे संघर्ष करके आज जिस मुकाम पर खड़े हैं वहां से उनके जीविटता का आभास होता है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो फुन्देलाल सिंह मार्को की चुनावी रणनीति हमेशा से चैंकाने वाली और दिखावा पन से दूर रहती है यही कारण है कि वह हर बार मतदान के पहले हारते रहते हैं और मतगणना में जीत जाते हैं। फिलहाल यही कारण है कि राजनीतिक विश्लेषक इसे एक नई चुनावी रणनीति मानकर चल रहे हैं जिसमें ऊपर से सब कुछ तो शांत नजर आ रहा है लेकिन अंदर ही अंदर अपने सजातीय मतदाताओं को साधने के लिए एक विशेष योजना पर काम हो रहा है। फिलहाल चुनाव तो तभी चढ़ता हुआ या उठता हुआ माना जाता है जब सड़क पर जिंदाबाद मुर्दाबाद के शोर से गूंजाय मान हो।
रस्सी जल गई ऐठ नहीं गई कांग्रेसियों की
शहडोल संसदीय क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्र में से सात विधानसभा हार चुकी कांग्रेस के बारे में अगर यह कहा जाए की रस्सी जल गई ऐठ नहीं गई तो गलत नहीं है। फिलहाल यहां पर बात केवल अनूपपुर कोतमा विधानसभा की बात की जाए तो पहले से ही कई बड़े कांग्रेसी नेता जनपत्रिनिधि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं इसके बावजूद बचे खुचे कांग्रेसियों में अभी भी गुटबाजी नजर आना इस बात का गवाह है। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी के नामांकन से लेकर अब तक पुष्पराजगढ़ विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो अनूपपुर और कोतमा विधानसभा में जितनी भी बैठक हुई हैं उनमें से अधिकतर बैठकों में कांग्रेसी नेताओं की गुटबाजी साफ झलक रही थी। इसी गुटबाजी के कारण विधानसभा चुनाव हारे हुए प्रत्याशी और उनके समर्थकों ने भी अभी तक कोई विशेष सबक नहीं लिया है जो आम लोगों में जन चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल कांग्रेसी सूत्रों की माने तो गुट बाजी और खेमे बाजी कांग्रेस की परंपरा में है और इस परंपरा का टूट जाना संभव नहीं है भले ही गिनती के ही लोग बचे हैं लेकिन उनको मुट्ठी बनाकर चुनाव मैदान में उतरना इतना आसान नहीं है।