।।लोग कुछ तो कहेंगे।।
रंग बरसे ओढ़ दुपट्टा ओढ़, खा धक्का खा
अनूपपुर | आयातित ही कहे जाओगे दुपट्टा ओढ़ने से चरित्र नही बदल जायेगा, मंत्री का हश्र भूल गये कैसे पर कतर दिये गये आज चेहरे से हंसी गायब है, फिर आकर कहोगे सुबह का भूला शाम को लौटकर घर आये तो उसे भूला नही कहते, इसे बिल्कुल मौजूदा राजनैतिक माहौल से जोड़ेंगे तो कोई अतिसंयोक्ति नही होगी, धक्का खाकर जिस तरह से दुपट्टा ओढ़ने की होड़ लगी है उससे काली करतूतों पर परदा नही पड़ जायेगा जिसका जैसा चरित्र है वैसा ही हर समय सामने आयेगा, खा कसम खा चाल चरित्र चेहरा नही बदलेगा, बदल गया तो मैं फलाने नही लेकिन ऐसा होगा नही इसका भरोसा रखिये, बहरहाल यह कहा जाये कि अब भय सताने लगा है तो उन्हें बुरा नही लगना चाहिये, क्योंकि हकीकत की दास्तां को देखने के बाद सब को घबराहट होने लगती है फिर चंदे की लिस्ट जगजाहिर है, अच्छे को अच्छा बुरे को बुरा शब्द की भी व्याख्यान होगी तो नया शब्द सामने आयेगा। तब तक तो दुपट्टा ओढ़े रहिये।