बरगवां मेले में अवैध वसूली, मेले की धार्मिक आस्था और परम्परा के साथ खिलवाड़
नगर परिषद की लापरवाही से जनता के लिये नही है मूलभूत सुवधिाएं
बरगवां। सनातन धर्म का प्रतीक मकर संक्रांति पर्व में आस्था के प्रति आपसी प्रेम भाईचारा के साथ पुरातन रीति रिवाज का पर्याय है जिसमें मेला का आयोजन कर हमें एकता के सूत्र में बांधने के साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति को कायम रखने की अद्भुत परंपरा है। जिस की निरंतरता इस बात का प्रमाण है की हम अपने धर्म आस्था के प्रति बदलते समय के अनुरूप भी इस परंपरा को निभाने के लिए सजग हैं। इसी कड़ी में मकर संक्रांति के पावन पर्व पर ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध दक्षिण मुखी हनुमान जी महाराज के दर्शन से पूर्व सोन नदी की धारा में पावन डुबकी लगाते हुए सूर्य भगवान का नमन व वंदन किया जाता है। तदुपरांत मेला महोत्सव में झूला झूल कर और गन्ने चबाने के साथ बच्चों को मोहने वाली खिलौने की खरीदी एवं मेले में अपने परिवार एवं स्नेही जनों के साथ मिष्ठान का आनंद व लुत्फ उठाया जाता है। मेले की सुंदरता और भव्यता बनाए रखने के लिए तरह-तरह के सांस्कृतिक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन मेला प्रांगण में आयोजित किए जाते हैं यह चार दिवसीय मेला इस क्षेत्र के लिए जहां पर औद्योगिक एवं कोयलांचल के लोग ऐतिहासिक मेला मैदान में आनंद पूर्वक सौहार्दपूर्ण वातावरण एवं सुरक्षा इंतजामों के बीच करने भारी संख्या में पहुंचते हैं। किंतु कुछ समय से खासकर 2 वर्ष मेला आयोजन ना होने के कारण मेले के आकार में कमी नजर आई जिसमें नगर परिषद बरगवां अमलाई के जनप्रतिनिधि पार्षद अध्यक्ष उपाध्यक्ष सिर्फ और सिर्फ मेला उद्घाटन के नाम पर टेंट लगाकर फोटोग्राफी सेल्फी लेकर अपने उत्तरदायित्व व जिम्मेदारी से मुंह छुपाते दिखे। कुछ समय के लिए कुर्सी पर बैठकर अपने कर्तव्य की खानापूर्ति करके अपने-अपने वाहनों से निकल लिए किंतु मेला मैदान मैं बाहर से आने वाले व्यापारी जिनके द्वारा अपने सामग्रियों को बेचने के लिए भाड़े के  वाहन को मेला प्रवेश कराने के लिए नगर परिषद मुख्य नगर पंचायत अधिकारी के इशारे पर फर्जी भर्ती कर्मचारियों के माध्यम से इस ऐतिहासिक मेला मैदान की पुरानी नियमावली व व्यवस्था को उलट पलट दिया गया ज्ञात हो कि पूर्व में मेला बैठ की वसूली सिर्फ और सिर्फ 14 जनवरी एवं 15 जनवरी को की जाती रही है किंतु नगर परिषद बरगवां अमलाई कि सीएमओ के इशारे पर मेला में भाड़े पर वाहन लेकर आने वाले वाहन चालकों एवं मालिकों से 12 जनवरी एवं 13 जनवरी को परिषद द्वारा रसीद काटकर 100 रुपए प्रवेश शुल्क के नाम पर लिया जा रहा था। इस प्रकार की गई अवैध वसूली का जिम्मेदार कौन और किसके इशारे पर मेले में इस प्रकार के कृत्य को अंजाम दिया जा रहा था यह शासन-प्रशासन को अवगत कराने के बावजूद भी इस प्रकार का आचरण किया गया जो कि आने वाले समय में मेले के आकार में कमी का कारण बन सकती है। जबकि मेला मैदान में व्यापारियों के लिए किसी प्रकार की सुविधा के इंतजाम नहीं किए गए और पेयजल के लिए बड़े-बड़े डिब्बे लेकर बुजुर्ग महिला और बच्चे घूमते दिखाई दिए यही नहीं अगर देखा जाए तो जब नगर परिषद के द्वारा वाहन स्टैंड वसूली का नीलामी किया गया तो फिर बाजार बैठ की वसूली को क्यों नहीं दिया गया ठेके पर यह इनकी अवैध वसूली करने की नियत पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। गौरतलब हो कि भारी भीड़ उड़ने वाली मेला मैदान में जहां पर प्रदर्शनी एवं झूला आयोजन किया जा रहा है सुरक्षा की दृष्टिकोण से शासन प्रशासन द्वारा बनाए गए नियम एवं व्यवस्थाओं को धता बताते हुए प्रदर्शनी झूला संचालक के द्वारा सामूहिक रूप से कार्यरत कर्मचारियों का ग्रुप इंश्योरेंस नहीं कराया गया फिर भी नगर परिषद के जिम्मेदार किस आधार पर इस प्रदर्शनी एवं झूला संचालक को एनओसी जारी कर दी गई या फिर नहीं यह भी संदेह के घेरे में आता है किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने की स्थिति में कौन होगा जिम्मेदार देखा जाए तो पूर्व के समय में सर्वप्रथम मकर संक्रांति के पावन पर्व पर लगने वाला ऐतिहासिक मेला हनुमान मंदिर मैदान मैं मेला के आयोजन से 10 दिन पूर्व ही साफ सफाई एवं अन्य सुविधा सुरक्षा इंतजामों की व्यवस्था सुदृढ़ कर ली जाती थी किंतु इस बार यहां तो सिर्फ और सिर्फ लोगों की निगाहें अवैध वसूली एवं सुविधा के अभाव पर टिकी रही।