कोतमा के इतिहास में सबसे बड़ी जीत हासिल करके दिलीप जायसवाल बने नायक
सुनील की सियासत हुई नत मस्तक

कोतमा। विधानसभा क्षेत्र में लहराया केशरिया परचम दिलीप जायसवाल की कोतमा विधानसभा क्षेत्र में ऐतिहासिक जीत जनता ने दिया कोतमा विधानसभा क्षेत्र में अब तक के जीत का सबसे बड़ा जनादेश ! लाडली लक्ष्मी योजना के साए तले विपक्ष हुआ धराशाई सुनील की सियासत की सियासत हुई नतमस्तक ! जीत हो तो ऐसी सामने वाला जिस सियासी जमीन पर खड़ा हो उसी सियासी जमीन को खींचकर राजनीतिक जीत का ठप्पा कुछ इस तरीके से लगाया जाए तो तमाम मुद्दे तमाम ऐलान उसी हवा में गुम हो जाएं जिस हवा में जीत का परचम लहराने  लगे! कहते हैं कि हिन्दुस्तान कि ताकत तो राजनीतिक सत्ता में बसती चुनावी वक्त पर जो भी बिसात बिछाते चला जाता है अगर वो सफल हुआ तो फिर नायक कहलाता है मतलब साफ है दिलीप अब कोतमा विधानसभा क्षेत्र के नायक हैं अब चुनावी बारीकियों को समझने की कोशिश कीजिए तो यहां पर ये कहना अतिश्योक्ती नहीं होगा कि लाडली लक्ष्मी योजना ने भाजपा की राह के सारे रोड़ों को न सिर्फ हटाने का काम किया अपितु उक्त योजना के अक्श तले विपक्ष के सारे समीकरण धराशाई होते चले गए और जनमत की इतनी मोटी लकीर भाजपा के पक्ष में खिंचती चली गई कि जब जनादेश आया तो वो कोतमा विधानसभा क्षेत्र के इतिहास के पन्नों में दर्ज होगया यकीनन जब 22788 जीत का आंकड़ा लोगों के सामने आया जिसने भी सुना उसने यही कहा वाकई गजब की जीत है जी अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें या राजनीतिक जानकारों की मानें तो कोतमा विधानसभा क्षेत्र में इतना बड़ा जना देश किसी के पक्ष में अब तक आया नहीं राजनीतिक समीक्षकों की चुनावी समीक्षाओं को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया स्मरणीय है कि राजनीतिक जानकार मान तो यही रहे थे की जनमत की लकीर के इस पार या उस पार 1000 रूपये 1500 या फिर अधिकतम 2000 के आसपास ही जीत हार संभव है ऐसे कयास राजनीतिक समीक्षकों द्वारा चुनावी पिच पर दिखाई पड़ने वाले समीकरणों के आसरे लगाए जा रहे थे लेकिन और चुनावी जमीन पर ऐसा ही कुछ महसूस भी हो रहा था लेकिन जब ई बी एम मसीनो के भीतर से शहरों से लेकर गांवों दर गांवों से जनादेश आना शुरू हुए तो समीक्षकों की समीक्षाओं और चुनावी पिच पर अहसास होने वाले जो समीकरण ऐसा अहसास हो रहा था की ये कांग्रेस के पक्ष में करवट लेंगे वो या तो चले नहीं या फिर चले भी तो।एक एक कर भाजपा के पक्ष में करवटें लेते चले गए और जो चले भी वो ज्यादा असरकारक साबित हो नहीं पाए समीक्षकों की समीक्षाओं की हवा निकाल कर रख दी सारे कयास  और अनुमान सिफर साबित हुए शायद भाजपा के नेताओं ने भी सोचा नहीं होगा कि जीत का अंतर इतना बड़ा होगा तो क्या ये मानना अतिश्योक्ती होगी कि लाडली लक्ष्मी योजना का करेंट और कांग्रेस का चुनावी मिस मैनेजमेंट और इन दोनों के बीच कांग्रेस के उम्मीदवार सुनील सराफ की विधायक कार्यकाल के दौरान उनका सिस्टम या फिर कार्यप्रणाली और भाजपा के पक्ष में। जाते समीकरण ये ऐसे पैमाना बनाकर सामने आए जो भाजपा को चुनावी महाभारत के इर्द-गिर्द इतनी प्रचंड जीत दिलाने में कारगर साबित हुए गौरतलब है कि अगर कांग्रेस की जमीनी संगठनात्मक संरचना की जमीन या फिर चुनावी चैसर पर रणनीति को अगर भाजपा से जोड़ा जाए और करीब से चीजों परखना शुरू किया जाए तो एक बड़ी तस्वीर स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती हैं उल्लेखनीय है कि भाजपा की गांव दर गांव और शहरों में भी कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम है चुनावी वक्त पर मतदान केन्द्रों में पन्ना प्रभारी अर्ध पन्ना प्रभारी बूथों पर कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम काम करती है जबकि कांग्रेस की संगठन की जमीन खुरदुरी बंजर और पोपली है बीते विधानसभा चुनाव में खबर तो यहां तक आई कि कुछ मतदान केन्द्रों में कांग्रेस के पोलिंग एजेंट भी नहीं थे सर्विदित है कि वोटों की फसल काटनें में कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम का अहम् योगदान होता है।